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13 March 2025   Admin Desk



महिलाओं के नेतृत्व में विकास

Article written by: ज्योति विज, महानिदेशक, फिक्की

पिछले दशक में भारत की विकास गाथा में एक उल्लेखनीय बदलाव आया है और इस यात्रा का सबसे उत्साहवर्धक पहलू यह है कि इस देश की विकास गाथा में महिलाओं की भूमिका में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। आज हम गर्व से यह कह सकते हैं कि भारत के विकास के एजेंडे के केन्द्र में ‘नारी शक्ति’ है। भारत महिलाओं को न केवल जमीनी स्तर पर सशक्त बना रहा है, बल्कि विकसित भारत के निर्माता के रूप में उनके नेतृत्व का मार्ग भी प्रशस्त कर रहा है। 

महिलाओं को विकास के लाभार्थी के रूप में देखने से लेकर उन्हें परिवर्तन के वाहक के तौर पर पहचानने की दिशा में आया बदलाव, सरकार की विभिन्न योजनाओं एवं पहलों द्वारा समर्थित है। जीवन की निरंतरता से संबंधित दृष्टिकोण के तहत तैयार की गई ये नीतियां महिलाओं के जीवन को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं और यह सुनिश्चित कर रही हैं कि उन्हें बचपन से लेकर शिक्षा, सम्मानजनक जीवन, मातृत्व, वित्तीय आजादी एवं आर्थिक एकीकरण के मामले में सहायता हासिल हो।

‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ और ‘सुकन्या समृद्धि योजना’ जैसी शैक्षिक एवं पोषण संबंधी सहायता योजनाओं ने शिक्षा के क्षेत्र में लैंगिक असमानताओं को पाटने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इन पहलों ने न केवल जन्म के समय लिंग अनुपात को बेहतर बनाने में मदद की है, बल्कि लैंगिक रूप से अपेक्षाकृत अधिक संतुलित समाज के निर्माण का आधार भी तैयार किया है।

इसके अलावा, आंगनवाड़ी प्रणाली और पोषण अभियान जैसी पहलों ने महिलाओं एवं बच्चों के स्वास्थ्य एवं कल्याण को सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाई है। ये कार्यक्रम यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि महिलाओं तथा युवतियों को वह पोषण एवं शिक्षा मिले जिसकी उन्हें अपने भविष्य की एक ठोस नींव रखने के लिए ज़रूरत है।

स्वास्थ्य एवं स्वच्छता से जुड़ी योजनाओं ने भी महिलाओं के जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाने में गहरा असर डाला है। उदाहरण के लिए, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना ने देश भर में 10.3 करोड़ से ज़्यादा एलपीजी कनेक्शन प्रदान किए हैं। इस कदम से खाना पकाने के पारंपरिक ईंधन से जुड़े स्वास्थ्य संबंधी जोखिम कम हुए हैं। स्वच्छ भारत मिशन ने 11.8 करोड़ शौचालयों का निर्माण किया है। इससे महिलाओं की स्वच्छता और सुरक्षा के मामले में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। इन प्रयासों का महिलाओं की उत्पादकता पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ा है।

सबसे परिवर्तनकारी पहलों में से एक है ‘दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (डीएवाई-एनआरएलएम)। इस योजना ने आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवारों - खासतौर पर ग्रामीण महिलाओं एवं समुदायों को बेहद सशक्त बनाया है। 31 जनवरी, 2025 तक, 10.05 करोड़ से ज़्यादा परिवारों को लगभग 90.87 लाख स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) में संगठित किया जा चुका है। इसके अलावा, एसएचजी के छह लाख से अधिक सदस्यों को विभिन्न भूमिकाओं - पशु सखी एवं कृषि सखी से लेकर बैंक सखी, बीमा सखी और पोषण सखी तक - में सामुदायिक संसाधन व्यक्ति (सीआरपी) के रूप में प्रशिक्षित किया गया है। इन प्रयासों ने महिलाओं को न केवल वित्तीय स्थिरता प्रदान की है, बल्कि उनमें अपने समुदायों के भीतर नेतृत्वकारी भूमिका निभाने का आत्मविश्वास भी जगाया है। 

देश के तेज विकास को नवाचार एवं उद्यमिता से गति मिल रही है। “मेक इन इंडिया” और “डिजिटल इंडिया” जैसी पहल न केवल भारत के आर्थिक परिदृश्य को बदल रही हैं, बल्कि महिलाओं के लिए नए अवसर भी पैदा कर रही हैं। भारत, जिसे अब दुनिया के तीसरे सबसे बड़े स्टार्टअप इकोसिस्टम के रूप में पहचाना जाता है, महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यमों में उछाल का साक्षी बन रहा है। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (पीएमएमवाई) और स्टैंड-अप इंडिया जैसी पहल इस रूझान को बढ़ावा देने में सहायक रही हैं।

पालना योजना और कामकाजी महिला छात्रावास योजना जैसी लक्षित पहलों के माध्यम से श्रमशक्ति में महिलाओं की भागीदारी में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य कामकाजी महिलाओं के सामने आने वाली दो सबसे महत्वपूर्ण बाधाओं – देखभाल संबंधी कार्य और आवास से जुड़ी समस्या - को दूर करना है। 

इन उन्नतियों के बावजूद, देश में देखभाल से संबंधित एक समग्र एवं गुणवत्तापूर्ण इकोसिस्टम स्थापित करना तत्काल आवश्यक है। यों तो सरकार बच्चों एवं वृद्धों की देखभाल से जुड़ी सुविधाओं के मामले में मौजूद खाई को पाटने की दिशा में सराहनीय प्रगति कर रही है, लेकिन चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं। एक ऐसे समन्वित दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो न केवल भौतिक बुनियादी ढांचे को मजबूत करे, बल्कि एक मजबूत नीतिगत ढांचे एवं गुणवत्ता आश्वासन तंत्र को भी कार्यान्वित करे।

उदाहरण के लिए, सरकार डे-केयर सेंटरों को प्रमाणित करने और मानकीकरण सुनिश्चित करने के उद्देश्य से उनकी गुणवत्ता की नियमित निगरानी करने हेतु एक वैधानिक निकाय के गठन पर विचार कर सकती है। इसके अलावा, कामकाजी महिलाओं को बच्चों (5 वर्ष की आयु तक के बच्चों) की देखभाल पर किए गए खर्चों के लिए एक निर्धारित सीमा तक विशेष कर संबंधी छूट प्रदान करने से अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी को और अधिक बढ़ावा मिलेगा।

इसके अलावा, राज्यों द्वारा महिलाओं को शारीरिक श्रम वाली (ब्लू कॉलर) नौकरियों में भागीदारी के लिए प्रोत्साहित करने वाली नीतियों को अधिक व्यापक रूप से अपनाने की आवश्यकता है। इन नीतियों में रात की पाली में काम करने तथा सुरक्षा से जुड़े उपायों का पर्याप्त प्रावधान होना चाहिए। 

सरकार ने महिलाओं के राजनीतिक एवं डिजिटल सशक्तिकरण की दिशा में भी उल्लेखनीय प्रगति की है। पीएमजीडीआईएसएचए जैसी डिजिटल पहल ग्रामीण महिलाओं को वित्तीय आजादी हासिल करने के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने में समर्थ बना रही है। एआई, ब्लॉकचेन और फिनटेक का उदय एसटीईएम क्षेत्रों में महिलाओं के लिए नए मार्ग प्रशस्त कर रहा है, जिसमें विज्ञान एवं इंजीनियरिंग में महिलाएं-किरण (डब्ल्यूआईएसई-किरण) और संस्थानों को बदलने के लिए लैंगिक उन्नति (जीएटीआईI) जैसी पहल शामिल हैं। राजनीतिक मोर्चे पर, महिला आरक्षण विधेयक के पारित होने से विधायी निकायों में अधिक प्रतिनिधित्व का मार्ग प्रशस्त हुआ है। इससे शासन के हर स्तर पर महिलाओं की आवाज का सुना जाना सुनिश्चित हुआ है।

इन सरकारी योजनाओं का परिवर्तनकारी प्रभाव देश भर में महिला नेताओं व उद्यमियों और परिवर्तन को संभव बनाने वाली महिलाओं की बढ़ती संख्या से स्पष्ट है। सशक्त महिलाएं न केवल अपने भविष्य को आकार दे रही हैं, बल्कि सामाजिक-आर्थिक प्रगति को भी दिशा दे रही हैं। वास्तव में, महिलाओं के नेतृत्व वाला विकास फिक्की जैसे संगठनों की प्रमुख प्राथमिकताओं में से एक रहा है और इसे विकसित भारत का एक अनिवार्य शर्त माना गया है।

महिलाओं के नेतृत्व में विकास की यात्रा जारी है और इसकी सफलता सरकार एवं निजी क्षेत्र, दोनों के सामूहिक व निरंतर प्रयासों पर निर्भर करेगी।



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