गर्भ में संतान के आगमन की खबर निश्चित होना एक मां को मातृत्व का एहसास दिलाने की पहली घड़ी होती है। मां बनने के सौभाग्य से बड़ी खुशनसीबी शायद इस जहां में कोई और दूसरी नहीं।
मां बनके मां कहलाना आसान है, पर क्या एक मां के रूप में आपका किरदार आपकी संतान की नजर में खरा उतर के सफल हो गया या आपको एक बेहतर मां बनने के लिए हर रोज़ अपनी संतान की नजरों में परीक्षा देनी पड़ती है ?
आजकल की संतानों की मनोदशा पहले के बच्चों की तरह सरल नहीं। अब परिवार छोटे होते हैं, ज्यादातर माता-पिता दोनों ही कामकाजी होते हैं, शिक्षा का बोझ बच्चों से बर्दाश्त नहीं होता, जीवन शैली में भी काफी बदलाव आने के कारण नई पीढ़ी के बच्चे काफी जिद्दी, चिड़चिड़े गुस्सैल और मूडी हो गए हैं। अब आप ही सोचिए कि अगर ऐसे बच्चों की मनोवृत्ति को समय से नियंत्रित न किया जाए तो आगे क्या परिणाम हो सकते हैं ? ऐसी स्थिति में एक मां का ही सबसे मुख्य किरदार है कि अपनी संतान को एक अच्छा और लायक इंसान बनाए।
अपनी संतान के भावों के उतार-चढ़ाव को समझने का हुनर हर एक मां में होना चाहिए साथ ही उनकी भावनाओं के अनुसार खुद को समय-समय पर ढालना भी आना चाहिए। ऐसा करने से बच्चों के मन में मां के प्रति अटूट लगाव और आश्रय महसूस होता है। और एक बार ये लगाव दृढ़ हो जाए तो बच्चों की नकारात्मक भावनाओं को नियंत्रित करना और उनसे तालमेल बैठाना काफी आसान हो जाता है।
(यह लेखक के अपने विचार हैं)
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