संवाददाता संतोष उपाध्याय
लखनऊ: सावित्री का व्रत प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि के दिन मनाया जाता है। इस दिन शादीशुदा महिलाओं पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं और वट के पेड़ की पूजा करती हैं। इस बार वट सावित्री व्रत 6 जून को मनाया गया। हिंदू धर्म शास्त्रों में वट यानि बरगद के पेड़ को पूजनीय स्थान दिया गया है और कहते हैं कि इस एक वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं का वास होता है। इसलिए यदि पूरी विधि के साथ वट वृक्ष का पूजन करने से सभी देवताओं का आशीर्वाद मिलता है। पंडित बताते हैं सुहागन महिला अपने पति की लंबी उम्र की कामना के लिए यमराज देव को प्रसन्न करती हैं। उनसे कामना करती हैं कि यमराज देव उनके सुहाग को बचा कर रखें। वैवाहिक स्त्री सुबह स्नान कर नव वस्त्र धारण कर इस व्रत को आरंभ करती है। हिंदू मान्यता के अनुसार वट सावित्री के दिन वट वृक्ष की पूजा करने का तात्पर्य यमराज की पूजा करना है।
पंडित बताते हैं ये पूजा ना तो कुमारी कन्या करती है ना ही विधवा स्त्री, और ना पुरुष। सिर्फ और सिर्फ सध्वा स्त्री इस व्रत को करती हैं। सुहागिन पूजा करने के बाद ही पानी ग्रहण करती हैं। हिंदू मान्यता के अनुसार वट सावित्री के दिन वट वृक्ष की पूजा करने का तात्पर्य यमराज की पूजा करना है। उत्तर भारत में इस व्रत का बहुत महत्व है। इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। वट सावित्री का व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या पर मनाया जाता है। इस व्रत में आम लीची, केला, पान, सुपारी फल को विशेष महत्व दिया गया है इसके साथ ही घी में आटे से बने बरगद के पत्ते के आकार के पकवान का भोग चढ़ाया जाता है। मान्यतानुसार महिलाओं को वट सावित्री व्रत के दिन आम का मुरब्बा, गुड़ या चीनी जरूर खाना चाहिए। इस दिन प्रभु को पूड़ी, चना और पूआ को भोग लगाकर प्रसाद के रूप में ग्रहण करना चाहिए। वट सावित्री व्रत के दिन तामसिक प्रवृति की वस्तुएं बिलकुल नहीं खानी चाहिए।
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