महासमुंद: यदि आप प्रकृति, पहाड़ और एडवेंचर के शौकीन है तो महासमुंद जिले के सरायपाली में स्थित शिशुपाल पर्वत एक शानदार पर्यटन स्थल हो सकता है। आजकल शिशुपाल पर्वत ट्रैकिंग और एडवेंचर के शौकीनों के बीच एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल के रूप में उभर रहा है। यह स्थान अपनी अद्वितीय प्राकृतिक सुंदरता और ऐतिहासिक महत्त्व के लिए जाना जाता है। राजधानी रायपुर से 157 किमी और सरायपाली से लगभग 20 किमी की दूरी पर स्थित यह पर्वत पर्यटकों को प्रकृति के करीब लाने का एक शानदार अवसर प्रदान करता है।
शिशुपाल पर्वत समुद्र तल से 900 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां तक पहुंचने के लिए रोमांचक ट्रैकिंग मार्ग है, जो साहसिक गतिविधियों के प्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। ट्रैकिंग मार्ग घने जंगलों, चट्टानों और प्राकृतिक पगडंडियों से होकर गुजरता है। पहाड़ के ऊपर एक विशाल मैदान है, जहां से वर्षा ऋतु के दौरान पानी 1100 फीट नीचे गिरकर घोड़ाधार जलप्रपात का निर्माण करता है। यह झरना और उसके चारों ओर हरियाली एक अद्वितीय दृश्य प्रस्तुत करते हैं। पर्यटन की बढ़ती संभावनाओं को देखते हुए, दो साल पहले पर्यटन मंडल ने इसे पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने की पहल की। यहां पहुंचने वाले सैलानियों के लिए आधारभूत सुविधाओं का निर्माण किया गया, जिससे उनकी यात्रा सुखद और आरामदायक हो सके।
शिशुपाल पर्वत की प्राकृतिक सुंदरता और शांत वातावरण इसे एक आदर्श पर्यटन स्थल बनाते हैं। यहां का वातावरण, झरने की आवाज और ठंडी हवा पर्यटकों को मानसिक शांति और सुकून का अनुभव कराती है। यह स्थान फोटोग्राफी और प्रकृति के अद्भुत दृश्यों के लिए भी प्रसिद्ध है। शिशुपाल पर्वत न केवल रोमांचक ट्रैकिंग स्थल है, बल्कि इतिहास और प्रकृति का अद्भुत संगम भी है। यह स्थान ट्रैकिंग, फोटोग्राफी और प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेने के लिए एक बेहतरीन विकल्प है। यदि आप प्राकृतिक सुंदरता, रोमांच और इतिहास का अनुभव करना चाहते हैं, तो शिशुपाल पर्वत आपकी सूची में होना चाहिए। अपनी ऐतिहासिक महत्व और प्राकृतिक आकर्षण के साथ, शिशुपाल पर्वत आज के दौर में पर्यटन का नया केंद्र बनता जा रहा है।
शिशुपाल पर्वत पर हर वर्ष मकर संक्रांति और महाशिवरात्रि के अवसर पर भारी संख्या में भक्त दर्शन और पूजा के लिए आते हैं। इस दौरान मंदिर के आसपास भव्य मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें लोग धार्मिक अनुष्ठानों के साथ-साथ मेले की चहल-पहल का आनंद लेते हैं। मकर संक्रांति पर लगने वाला यह मेला पर्यंत शिव मंदिर और बस्तीफली के इतिहास और प्राकृतिक सौंदर्य का संगम है। धार्मिक आस्था, ऐतिहासिकता, साहसिक पर्यटन का अद्भुत अनुभव इसे एक संपूर्ण पर्यटन स्थल बनाता है। यह मेला न केवल स्थानीय लोगों के लिए, बल्कि दूर-दूर से आने वाले पर्यटकों के लिए भी विशेष आकर्षण का केंद्र है। यहां रोजगार के नए अवसर भी सृजित हो सकता है।
स्थानीय नागरिकों ने बताया कि शिशुपाल पर्वत (बूढ़ा डोंगर) का नाम स्थानीय लोककथाओं से जुड़ा हुआ है। किंवदंती है कि इस पहाड़ पर कभी राजा शिशुपाल का महल हुआ करता था। यहां का गौरवशाली इतिहास रहा है पर्वत के उपर ही अभेद्य दुर्ग, सुरंग एवं शिवमंदिर का निर्माण किया गया है, जिसका भग्नावशेष आज भी अतीत की गौरवगाथा सुनाती है। जिसके जब अंग्रेजों ने राजा को घेर लिया, तो उन्होंने वीरता का प्रदर्शन करते हुए अपने घोड़े की आंखों पर पट्टी बांधकर पहाड़ से छलांग लगा दी। इस घटना के कारण इस पर्वत का नाम शिशुपाल पर्वत और यहां स्थित झरने का नाम घोड़ाधार जलप्रपात पड़ा। यह बारहमासी झरना अत्यधिक ऊँचाई से गिरने के कारण अद्भुत सौंदर्य का अप्रतिम उदाहरण है।
इस क्षेत्र को पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित किए जाने की पहल शासन द्वारा किया जा रहा है। पिछले दिनों वन विभाग द्वारा पर्यटन और रोजगार की संभावनाओं को देखते हुए स्थल का निरीक्षण किया गया। चूंकि आसपास के क्षेत्र में बंसोड़ जाति बहुतायत संख्या में पाए जाते है, जो बांस की कलाकृति बनाते है। उन्हें भी रोजगार से जोड़ा जा सकता है। साथ ही एक पर्यटन परिपथ के रूप में भी विकसित किया जा सकता है। जानकारों का कहना है कि यहां से चंद्रहासिनी देवी मंदिर, गोमर्डा अभ्यारण, सिंघोड़ा मंदिर, देवदरहा जलप्रपात एवं पर्यटन स्थल नरसिंहनाथ को जोड़ा जा सकता है।
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