नई दिल्ली: विदेश मंत्री डॉ. सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने आज इस बात पर जोर दिया कि आर्थिक और औद्योगिक रूप से कमजोर राष्ट्रों की आकांक्षाओं और हितों को वैश्विक मंच पर पूरी तरह से प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। जापान-भारत-अफ्रीका व्यापार मंच पर वर्चुअल रूप से अपने संबोधन में डॉ. जयशंकर ने कहा कि भारत ने लगातार इस मुद्दे को आगे बढ़ाया है, चाहे वह वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन के माध्यम से हो या जी-20 की अध्यक्षता के माध्यम से।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अफ्रीका के प्रति भारत का दृष्टिकोण हमेशा दीर्घकालिक और पारस्परिक रूप से लाभकारी साझेदारी बनाने की गहरी प्रतिबद्धता से निर्देशित रहा है। उन्होंने बताया कि भारत क्षमता निर्माण, कौशल विकास और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में विश्वास करता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि अफ्रीकी देश न केवल निवेश से लाभान्वित हों बल्कि वे अपना आत्मनिर्भर विकास पारिस्थितिकी तंत्र भी विकसित करें।
विदेश मंत्री ने कहा कि भारत अफ्रीका का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जिसका द्विपक्षीय व्यापार लगभग एक सौ अरब डॉलर तक पहुँच गया है। उन्होंने कहा कि भारत ने अफ्रीका की कनेक्टिविटी और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए भी महत्वपूर्ण प्रतिबद्धता जताई है, जिसके अन्तर्गत 12 अरब डॉलर से अधिक रियायती ऋण और पूरे महाद्वीप में फैली दो सौ से अधिक पूर्ण परियोजनाएं शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि पेयजल योजनाओं से लेकर सिंचाई, ग्रामीण सौर विद्युतीकरण और बिजली संयंत्रों जैसे विभिन्न क्षेत्रों में भारत की विकास परियोजनाओं ने स्थानीय रोजगार पैदा किए हैं और अफ्रीका में जीवन बदल दिया है।
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