रायपुर: छत्तीसगढ़ के कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान (KVNP) को यूनेस्को की विश्व धरोहर की अस्थायी सूची में प्राकृतिक श्रेणी के अंतर्गत शामिल किया गया है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कहा है कि ये छत्तीसगढ़ के लिये बड़ी उपलब्धि है। उन्होंने कहा कि ये हर्ष का विषय है कि यूनेस्को द्वारा कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान को विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया है । कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान न केवल जैव विविधता के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, बल्कि यह स्थानीय जनजातीय संस्कृति और इको-टूरिज्म को भी बढ़ावा देता है। इस सूची में शामिल होने से बस्तर क्षेत्र को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलेगी एवं पर्यटन को और भी बढ़ावा मिलेगा । यह उपलब्धि पूरे छत्तीसगढ़ के लिए गर्व का विषय है ।
उल्लखेनीय है कि यह उद्यान तीन महत्वपूर्ण मापदंडों—प्राकृतिक सौंदर्य, भूवैज्ञानिक विशेषताएँ, और जैव विविधता पर खरा उतरता है। कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान प्रबंधन द्वारा उद्यान को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल करने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI), संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार को प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया था, जिसे यूनेस्को द्वारा अपने अस्थाई सूची में चयन किया गया है।
कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान अपने मनमोहक प्राकृतिक दृश्यों, हरी-भरी घाटियों, गहरी खाइयों और झरनों के लिए प्रसिद्ध है। तीरथगढ़ जलप्रपात, जो कांगेर नदी से निकलता है, 150 फीट की ऊंचाई से गिरता हुआ एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करता है। कांगेर नदी अपने स्वच्छ जल और अनूठी चट्टानी संरचनाओं के कारण महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है। इसके अलावा, कोटमसर, कैलाश, दंडक और ऐसी १५ से अधिक गुफाएँ अपने अद्वितीय प्राकृतिक स्वरूप और ऐतिहासिक महत्व के कारण देश और विदेश के पर्यटकों और वैज्ञानिकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र हैं।
यह उद्यान अपनी भूवैज्ञानिक विविधता के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ की कार्स्ट संरचनाएँ, चूना पत्थर की गुफाएँ, जल संरचनाएँ और चट्टानी परतें वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं के लिए अध्ययन का एक महत्वपूर्ण केंद्र हैं। इस क्षेत्र में भूवैज्ञानिक परिवर्तन देखे जाते हैं। चूना पत्थर की गुफाएँ पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है।
जैवविविधता से भरपूर यह उद्यान में विभिन्न वनस्पति, वन्यजीव और विशेष प्रजाति के प्रजातीय पाए जाते है| 963 प्रकार की वनस्पतियाँ, जिनमें 120 फ़ैमिली और 574 प्रजातियाँ शामिल हैं। यहाँ दुर्लभ ऑर्किड की 30 प्रजातियाँ दर्ज की गई हैं। 49 स्तनपायी, 210 पक्षी, 37 सरीसृप, 16 उभयचर, 57 मछलियाँ और 141 तितली प्रजातियाँ है । बस्तर हिल मैना (छत्तीसगढ़ का राज्य पक्षी), ट्रैवणकोर वुल्फ स्नेक, ग्रीन पिट वाइपर, मोंटेन ट्रिंकेट स्नेक जैसी दुर्लभ प्रजातियाँ है ।
कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान बस्तर की समृद्ध जनजातीय संस्कृति को संरक्षित करता है। यहाँ गोंड और धुरवा जनजातियाँ रहती हैं, जो अपनी पारंपरिक रीति-रिवाजों, नृत्य, लोकगीतों और त्योहारों के लिए प्रसिद्ध हैं। इस क्षेत्र में स्थानीय आदिवासियों द्वारा हस्तशिल्प कला जैसे बांस शिल्प कलाकृतियाँ विशेष रूप से लोकप्रिय हैं। यहाँ के आदिवासी समुदाय प्रकृति से गहराई से जुड़े हुए हैं और जंगलों से जुड़ी अनेक कहानियाँ और मान्यताएँ पीढ़ियों से चली आ रही हैं। इको-टूरिज्म और साहसिक पर्यटन गतिविधियों में जंगल सफारी, बर्ड वॉचिंग, ट्रेकिंग ,कयाकिंग बम्बू राफ्टिंग , कैम्पिंग , होमस्टे , गुफा भ्रमण और फोटोग्राफी के बेहतरीन अवसर मिलते हैं, जिससे यह रोमांचक पर्यटन स्थल बनता है। यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता, ऐतिहासिक गुफाएँ, वन्यजीव, और सांस्कृतिक विरासत इसे छत्तीसगढ़ के प्रमुख पर्यटन स्थलों में शामिल करते हैं। कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के विशेषता को देखते हुए इसे यूनेस्को ने अस्थायी सूची में शामिल किया गया है । उद्यान को यूनेस्को की अस्थायी सूची में शामिल किया जाने से बस्तर क्षेत्र को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिलने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
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