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03 July 2025   bharatiya digital news Admin Desk



वायु प्रदूषण से निपटने के लिए IIT कानपुर और IBM का साझेदारी

उत्तर प्रदेश में AI-आधारित वायु गुणवत्ता निगरानी और समाधान की शुरुआत

संवाददाता - सन्तोष उपाध्याय

लखनऊ, UP (INDIA) : वायु प्रदूषण की चुनौती से निपटने के लिए IIT कानपुर के Airawat Research Foundation जो सतत शहरी विकास हेतु आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का Centre of Excellence है। IBM के साथ एक महत्वपूर्ण साझेदारी की घोषणा की है। यह पहल उत्तर प्रदेश में AI-सक्षम, वास्तविक समय आधारित और स्थानीय साक्ष्य-आधारित वायु गुणवत्ता प्रबंधन को साकार करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। इसका उद्देश्य आर्थिक विकास और पर्यावरणीय सततता के बीच संतुलन बनाते हुए विकसित भारत के राष्ट्रीय दृष्टिकोण को समर्थन देना है।इस साझेदारी के तहत एक व्यापक AI-आधारित वायु गुणवत्ता स्टैक (Air Quality Stack) विकसित किया जा रहा है, जो किफायती देसी सेंसर और उन्नत मशीन लर्निंग मॉडलों के माध्यम से प्रदूषण स्रोतों की पहचान, हॉटस्पॉट विश्लेषण और सटीक नीति-निर्धारण में मदद करेगा। यह पहल प्रो. सच्चिदानंद त्रिपाठी के नेतृत्व में चल रही है, जो Kotak School of Sustainability के डीन और Airawat Research Foundation के परियोजना निदेशक हैं। उनकी टीम ने उत्तर प्रदेश और बिहार के 1,365 प्रशासनिक ब्लॉकों में कम लागत वाले देसी सेंसर स्थापित किए हैं, जिससे भारत का पहला एयरशेड आधारित फ्रेमवर्क तैयार किया गया है।

प्रो. त्रिपाठी ने बताया, “हमने पूरे डेटा पर आधारित एयरशेड सीमाएं तैयार की हैं, न कि सिमुलेशन मॉडल पर। उदाहरण के तौर पर, बिहार और यूपी के सीमावर्ती क्षेत्रों में एक साझा एयरशेड सामने आया है। यह मॉडल यह भी बताता है कि उत्तर और दक्षिण में दो बड़े एयरशेड हैं, जो 1520 जिलों तक फैले हैं जिससे राज्यों के बीच सहयोग की आवश्यकता स्पष्ट होती है। उनकी टीम द्वारा विकसित मोबाइल एयर क्वालिटी लैब अत्याधुनिक उपकरणों से लैस है, जो प्रदूषण स्रोतों की पहचान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। लखनऊ में केवल 12 दिनों की तैनाती में इस लैब ने औद्योगिक प्रदूषण स्रोत, धातु-आधारित प्रदूषक, ई-कचरे का जलना, और कोयले का दहन जैसे सटीक स्रोत उजागर किए।AI आधारित स्रोत विश्लेषण और हॉटस्पॉट पहचान प्रणाली मोबाइल लैब मापनों और सेंसर डेटा को प्रशिक्षित करके एक AI-पाइपलाइन विकसित की गई है जो विभिन्न प्रदूषण स्रोतों की पहचान कर सकती है। AI और डेटा की मदद से हम उत्तर प्रदेश और बिहार में व्यापक AQ स्टैक तैयार कर रहे हैं। सरकारी नेटवर्क के 110 मॉनिटर की तुलना में हमने 1,365 सेंसर लगाए हैं हर ब्लॉक स्तर पर। इनसे प्राप्त डेटा से हम अब PM2.5 की गणना 0.5 वर्ग किमी तक की सूक्ष्मता पर कर सकते हैं। लखनऊ जैसे शहर में हम प्रतिदिन 2 लाख डेटा पॉइंट्स जेनरेट कर पा रहे हैं।”

रवींद्र प्रताप सिंह, अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड: IIT कानपुर की यह तकनीक पारंपरिक स्टेशनों की तुलना में ज़्यादा बारीक डेटा देती है। वायु गुणवत्ता जैसे बड़े मुद्दे के समाधान के लिए हमें पर्याप्त और सटीक डेटा की ज़रूरत है खासकर स्रोत विश्लेषण के लिए। हालांकि सरकारी संसाधन सीमित हैं, लेकिन हम इस तकनीक को अपनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”श्री अनिल कुमार, प्रमुख सचिव, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार:“यूपी एक बड़ा राज्य है और इसकी अधिकांश आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है। ब्लॉक स्तर पर की गई निगरानी से यह पता चला है कि आजमगढ़, कुशीनगर, श्रावस्ती जैसे जिलों की हवा कई शहरी क्षेत्रों से भी ज्यादा खराब है। IIT कानपुर की तकनीक से हमें अब वास्तविक समय में यह जानकारी मिल रही है कि कहाँ दखल ज़रूरी है, और किस स्थान पर कौन सी योजना लागू की जाए। यह एक बड़ी उपलब्धि है।”“राज्य सरकार ने ‘ग्रीन बजट’, वृक्षारोपण, स्वच्छ भारत अभियान जैसे कई प्रयास किए हैं। वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए हमने UP CAMP नाम से 5,000 करोड़ का वर्ल्ड बैंक समर्थित कार्यक्रम तैयार किया है, जो जल्द शुरू होगा। विशाल चहल, वाइस प्रेसिडेंट, IBM इंडिया सॉफ्टवेयर लैब्स: यह साझेदारी दिखाती है कि सरकार, शिक्षा और उद्योग मिलकर कैसे स्केलेबल इनोवेशन को साकार कर सकते हैं। IBM की AI और डेटा विशेषज्ञता को IIT कानपुर की क्षेत्रीय समझ के साथ जोड़कर हम भारत की वायु गुणवत्ता लक्ष्यों को तेजी से प्राप्त करने में मदद करना चाहते हैं। अनुज गुप्ता, निदेशक AI और गवटेक, IBM इंडिया सॉफ्टवेयर लैब, लखनऊ, इस परियोजना के तकनीकी नेतृत्व की भूमिका निभा रहे हैं। वे डैशबोर्ड डिजाइन, सिस्टम आर्किटेक्चर और AI/ML इंटीग्रेशन को विकसित करेंगे।

स्थायी और सहयोगात्मक शहरी विकास की ओर एक कदम। यह साझेदारी न केवल उत्तर प्रदेश के लिए बल्कि पंजाब जैसे उन राज्यों के लिए भी मॉडल बन सकती है, जो शीतकालीन प्रदूषण से जूझते हैं। यह राज्य और ज़िले पार सहयोग को बढ़ावा देती है और एक राष्ट्रीय स्तर की पुनरुत्पादक प्रणाली का निर्माण करती है।



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