13 September 2021   Admin Desk



लेख: भारत की आर्थिक रिकवरी के मुखर आलोचक गलत क्यों हैं?

Article Written By: डॉ. के. वी. सुब्रमण्यम, मुख्य आर्थिक सलाहकार, भारत सरकार ठीक एक साल पहले, हमने जीडीपी में तेज गिरावट के बाद वी-आकार की तेज वृद्धि की भविष्यवाणी की थी। उस समय, अधिकांश लोगों ने इस भविष्यवाणी पर संदेह किया था। एक पूर्व वित्त मंत्री ने लिखा “एक बंजर रेगिस्तान में, वित्त मंत्री और मुख्य आर्थिक सलाहकार ने बिना पानी के हरे-भरे उद्यान देखे हैं!” उनके सूक्ष्म समझ की कमी निश्चित रूप से इस बयान से स्पष्ट थी, “30 जून, 2019तक सकल घरेलू उत्पादन का लगभग एक चौथाई, पिछले 12 महीनों में नष्ट हो गया है।” एक टैंक में पानी के स्तर के विपरीत, जीडीपी एक ऐसा पैमाना नहीं है, जो स्टॉक के स्तर को दर्शाता है। इसके बजाय, एक निश्चित समयावधि में बहने वाले पानी की मात्रा की तरह, जीडीपी एक निश्चित समयावधिमें आर्थिक गतिविधियों के प्रवाह को मापता है। यदि जीडीपी केवल स्टॉक का एक पैमाना होता, तो यह कहा जा सकता है कि स्टॉक में एक निश्चित प्रतिशत की कमी आयी। सुविधा के अनुसार व्याख्या (नैरटिव) पेश करने और दर्शकों की तालियाँ बटोरने की कला के रूप में राजनीति; अर्थव्यवस्था की सूक्ष्म समझ हासिल करने के कठिन काम की तुलना में अधिक आकर्षक व सरल होती है। आइए महत्वपूर्ण आंकड़ों पर गौर से नजर डालते है। पिछले साल की पहली तिमाही में 24.4 प्रतिशत की गिरावट के बाद, अर्थव्यवस्था ने बाद की तिमाहियों में -7.5 प्रतिशत, 0.4 प्रतिशत, 1.6% और 20.1 प्रतिशतकी वृद्धि दर दर्ज की है। यदि इन संख्याओं को अंकित किया जाये, तो ग्राफ “वी” जैसा दिखता है और यह किसी अन्य अक्षर के जैसा नहीं है। संयोग से, के-आकार की रिकवरी पर की गयी यह टिप्पणी अर्थव्यवस्था के वृहद् कारकों पर नहीं, बल्कि क्षेत्रीय पैटर्न पर केंद्रित है। हाथ की पांच अंगुलियों की तरह, क्षेत्रीय पैटर्न कभी भी एक जैसे नहीं होते हैं। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि वी-आकार की रिकवरी, अर्थव्यवस्था के मजबूत बुनियादी सिद्धांतों का प्रमाण है – एक ऐसी बात, जिसे मैंने पद संभालने के बाद लगातार सामने रखा है। जैसा आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 में स्पष्ट किया गया है, महामारी-पूर्व मंदी केवल वित्तीय क्षेत्र की समस्याओं के कारण पैदा हुई थी, जो सांठगांठ के आधार पर ऋण देना और 2014 से पहले बैंकिंग क्षेत्र के कुप्रबंधन से उत्पन्न हुई थी। दुनिया भर में हुए शोधों से पता चलता है कि वित्तीय क्षेत्र में इस तरह की गड़बड़ी के कारण पैदा हुई आर्थिक उथल-पुथल बहुत लंबे समय तक चलती है। इस तरह के सांठगांठ से दिए गए बैंक ऋण के पुनर्भुगतान की प्रक्रिया 5-6 साल के बाद ही शुरू होती है। अपना खर्च न निकाल पाने वाली बड़ी कंपनियों (जॉम्बी) को हमेशा ऋण उपलब्ध कराने के लिए बैंकरों के प्रोत्साहन जैसी वित्तीय अनियमिताओं का अंततः अन्य क्षेत्रों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है, जिसका नुकसान अर्थव्यवस्था को लंबे समय तक झेलना पड़ता है। कुछ टिप्पणीकार महामारी-पूर्व हुई मंदी का कारण विमुद्रीकरण और जीएसटी कार्यान्वयन को मानते हैं। हालांकि, विमुद्रीकरण, जिसमें जीएसटी कार्यान्वयन भी शामिल था, के आर्थिक प्रभाव पर किये गए शोध से पता चलता है कि इन निर्णयों से जीडीपी वृद्धि पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा है। शोध के ये निष्कर्ष इस तरह की टिप्पणी पर सवाल खड़े करते हैं तथा अर्थव्यवस्था के मजबूत मूल सिद्धांतों पर जोर देते हैं। महामारी के दौरान भी, तिमाही विकास पैटर्न ने केवल आर्थिक प्रतिबंधों की उपस्थिति या अनुपस्थिति को दर्शाया है और इस प्रकार मजबूत आर्थिक सिद्धांतों को ही फिर से रेखांकित किया है। देश स्तर पर घोषित लॉकडाउन के बाद,पिछले साल की पहली तिमाही में गिरावट दर्ज की गयी थी, जबकि चौथी तिमाही तक हुई रिकवरी प्रतिबंधों में मिले छूट को दर्शाती है। इस साल की पहली तिमाही में, विनाशकारी दूसरी लहर के दौरान मई और जून में अधिकांश राज्यों में मॉल, दुकानें और अन्य प्रतिष्ठान बंद कर दिए गए थे। गूगल का खुदरा गतिविधि आधारित दैनिक संकेतक, अपने 31मार्च के स्तर से पहली तिमाही से जुलाई के मध्य तक नीचे था। सबसे गंभीर स्थिति के दौरान खुदरा गतिविधि,31मार्च के स्तर से 70 प्रतिशत तक कम थी। खपत पर इस तरह के आपूर्ति प्रतिबंधों के प्रभाव के बावजूद, पिछले साल के अपने निम्न बिंदु से खपत में 20 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है। जुलाई के मध्य से, प्रतिबंधों में दी गयी ढील के कारण उच्च आवृत्ति वाले संकेतकों में महत्वपूर्ण सुधार हुए हैं। अभूतपूर्व सुधारों के बाद, अर्थव्यवस्था में अब तेजविकास का दौर आना स्वाभाविक है। कॉरपोरेट जगत, लागत में कटौती करके और अपने कर्ज को कम करके निवेश के लिए तैयार हो गया है। बैंकिंग क्षेत्र में लाभ दर्ज किये जा रहे हैं,जिसके परिणामस्वरूप खुदरा और एसएमई उधार के फंसे कर्ज के कारण पैदा हुई खराब स्थिति का सामना करने में बैंक सक्षम हो गए हैं। खराब ऋण के प्रत्येक रुपये का लगभग 88 प्रतिशत का प्रावधान सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा किया गया है। इसके अलावा,बैंकों में पर्याप्त पूंजी की उपलब्धता हाल के दिनों में सबसे अधिक है, क्योंकि बैंकों ने बाजारों से पूंजी जुटाई है। सुरक्षा के ये क्रमिक उपाय बैंकिंग क्षेत्र को कॉर्पोरेट निवेश के लिए उधार देने में सक्षम बनाते हैं। वैश्विक वित्तीय संकट (जीएफसी) के बाद दो अंकों की महंगाई दर के विपरीत, सरकार द्वारा आपूर्ति क्षेत्र के लिए किये गए उपायों के कारण महंगाई दर पिछले वर्ष की तुलना में औसतन 6.1 प्रतिशत रही है। लॉकडाउन और रात के कर्फ्यू के कारण आपूर्ति क्षेत्र को विभिन्न व्यवधानों का सामना करना पड़ा है, इसके बावजूद संकट के बावजूद इतनी कम महंगाई दर दर्ज की गयी है है। ऐसी स्थिति जीएफसी के बाद भी नहीं थी। साथ ही, सावधानीपूर्वक लक्षित और विवेकपूर्ण राजकोषीय व्यय ने यह सुनिश्चित किया है कि भारत का राजकोषीय घाटा अपने समकक्ष देशों के लगभग समान है। उच्च राजस्व व्यय के कारण, यह जीएफसी के बाद अपने समकक्ष देशों की तुलना में काफी अधिक हो गया था। जीएफसी के बाद भारी गिरावट के विपरीत, आपूर्ति पक्ष के उपायों ने चालू खाता को अच्छी स्थिति में बनाये रखा है। जीएफसी के बाद 10 अरब डॉलर का एफपीआई देश से बाहरगया, जबकि पिछले साल देश में 36 अरब डॉलर से अधिक का एफपीआई आया था। जीएफसी के बाद 8 अरब डॉलर की तुलना में एफडीआई प्रवाह लगभग 10 गुना बढ़कर करीब 80 अरब डॉलर हो गया है। जीएफसी के बाद मुद्रा में लगभग 60 प्रतिशत की गिरावट आई है, लेकिन अब यह स्थिर है। अर्थव्यवस्था के इन बृहद मौलिक सिद्धांतों को स्टार्टअप इकोसिस्टम द्वारा समर्थन दिया जा रहा है, जो 2014 में अपने निम्न स्तर पर था। न केवल भारतीय इतिहास में यूनिकॉर्न कंपनियों की संख्या सबसे अधिक हो गयी है, बल्कि अगस्त में आईपीओ की संख्या भी पिछले 17 वर्षों में सबसे अधिक रही है। वंशवादी धन या आपसी संबंधों के कारण नहीं, बल्कि यूनिकॉर्न कंपनियां अपने विचार की गुणवत्ता पर विकसित हुई हैं। यह योग्यता, अर्थव्यवस्था के लिए एक सुखद संकेत है। संक्षेप में, वैश्विक वित्तीय संकट के बाद हुए आर्थिक उथल-पुथल के विपरीत, सूक्ष्म समझ और सोच में स्पष्टता ने भारत को सदी में एक बार के संकट के दौरान भी लाभदायक आर्थिक नीति का मूल्यांकन करने और उसे लागू करने में सक्षम बनाया है। Disclaimer: The article is personal view of author/contributor. 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