रायपुर Raipur,Chhattisgarh,INDIA: भारत में कोयला खनन क्षेत्र में विकास का सालों पुराना इतिहास रहा है। कोयला भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण स्रोत है और इसके खनन का क्षेत्र देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करता है। पूर्व काल में, भारत में कोयले का खनन अप्रभावी और प्राचीन तकनीकों पर आधारित था। इससे न सिर्फ समय और कर्मचारियों का जीवन दांव में लगता था बल्कि बहुत बड़े स्तर में निवेश की आवश्यकता पड़ती थी। दरअसल भारत सरकार ने 01 मई 1973 को कोयला खदान अधिनियम, 1973 के अधिनियमन के साथ कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण किया। जिसने भारत में कोयला खनन की पात्रता निर्धारित की। किन्तु इसे 'न तो एक सुनियोजित, न ही एक सचेत समाजवादी अधिनियम' कहा गया जिसके लिए इसकी अत्यधिक आलोचना की जाने लगी और इसे अक्सर एक गलत धारणा वाला कानून कहा गया क्योंकि इससे कोयला खनन में केंद्र सरकार का एकाधिकार बन गया था। कोयला खदान के विशेष प्रावधान के तहत संसद ने वर्ष 2015 में 'कोयला खान (विशेष प्रावधान) अधिनियम 2015 को अधिनियमित किया। इसके तहत निर्धारित कोयला खदानों के आवंटन, भूमि और खदान के बुनियादी ढांचे पर अधिकार, स्वामित्व और हित निहित करने के लिए सार्वजनिक नीलामी के माध्यम से और कोयला खदानों के लाइसेंस और पट्टे का पूर्व तरीके से निर्वहन करते हुए कोयला ब्लॉकों का आवंटन, नियमों और शर्तों के अधीन किया गया। इससे आधुनिक युग में, तकनीकी उन्नति और नई तकनीकों के प्रयोग से खनन सेक्टर में क्रांति आई है। वहीं समय के साथ इसके खनन संबंधी पारंपरिक मॉडल में भी बदलाव को भी स्वीकार किया गया। वर्तमान में, भारत कोयला खनन में विशेषज्ञता और नवाचार का केंद्र बन गया है जो कि नए और आधुनिक खनन तकनीकों के प्रयोग से खनन प्रक्रिया को सुगम और सुरक्षित बनाने का रिकार्ड दिन प्रतिदिन बना रहा है। वहीं नवाचार की दृष्टि से माइन डेवलपर और ऑपरेटर (एमडीओ) मॉडल भी ज्यादातर सार्वजनिक उपक्रमों में आज एक सुगम मॉडल बनकर उभर रहा है। आखिर क्या है यह मॉडल आइए जानते हैं..
माइन डेवलपर और ऑपरेटर (एमडीओ) भारत में अपनाया गया खदानों के विकास और संचालन का एक मॉडल है। जो कि खनन क्षेत्र में सीमित संसाधनों के कारण अपनाया गया। इससे उत्पादन स्तर पर असर तो पड़ता ही है साथ ही उत्पादन में जरूरी उपाय और कुशल तकनीक सहित लागत एवं पूंजी प्रबंधन भी बेहतर होती है। वहीं सार्वजनिक उपक्रमों को न तो कोई निवेश,न कोई जमीन संबंधी पचड़े और न ही कर्मचारियों संबंधी किसी दायित्वों के निर्वहन की आवश्यकता होती है। यानि आम के आम और गुठलियों के भी दाम की कहावत इस मॉडल में चरितार्थ होती है।
भारतीय बाजारों में निजीकरण और उदारीकरण के बाद से, सरकार ने खनन क्षेत्र में निजी भागीदारी को आकर्षित करने के प्रयास किये हैं। एमडीओ मॉडल की कार्यशील प्रक्रिया, किसी आवंटित कोयला या अन्य प्राकृतिक संसाधनों के खदानों का स्वामित्व तथा उसके उत्पादन की उपयोगिता के हक को बिना बदले एक निजी संस्था या इकाई तथा एक सार्वजनिक उपक्रम (पीएसयू) के बीच हस्ताक्षरित कोयला खनन समझौते के तहत एमडीओ नियुक्त करना है। जो कि मोटे तौर पर भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास, लागू परमिट की खरीद, निर्माण गतिविधियां, खनन संयंत्र के बुनियादी ढांचे की स्थापना सहित पूर्व-प्रारंभिक गतिविधियों को अंजाम देता है। कोयला खदान के लिए भंडारण सुविधाओं का विकास, परिवहन और हैंडलिंग सुविधाओं का विकास आदि करना भी इसी की जिम्मेदारी होती है। परियोजना की संचालन अवधि के दौरान एमडीओ समझौते में निर्दिष्ट कोयले के उत्पादन के एक निश्चित स्तर को प्राप्त करने पर खनन शुल्क के लिए कोयला उत्खनन संचालन और वितरण बिंदुओं तक परिवहन करता है। आमतौर पर, ऐसे मॉडल सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) अवधारणा को दर्शाते है, जहां अत्याधुनिक कोयला निकासी तकनीक वाली निजी कंपनियां एक विशिष्ट अवधि के लिए पीएसयू की ओर से कोयला भंडार विकसित करती हैं।
सन् 2014 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 214 कोयला ब्लॉकों के आवंटन को रद्द करने और कोयला ब्लॉकों के कैप्टिव खनन के लिए लगभग सभी मौजूदा अनुमतियों को रद्द करने के बाद इस क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव देखा गया। इस फैसले के आधार पर कोयला उद्योग में नए कानून और जरूरी सुधार तैयार किये गए। एमडीओ मॉडल के लिए अनुबंध समझौता ड्राफ्ट 05 अगस्त 2015 को जारी किया गया और 06 जून 2016 को, कोयला मंत्रालय ने खदान डेवलपर और ऑपरेटर परियोजनाओं (एमडीओ) के लिए सामान्य दिशानिर्देश जारी किए। भारत में कोयला खनन को नियंत्रित करने वाले महत्वपूर्ण कानून मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत, इन प्रमुख कार्यों को सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू या पीएसयू) अर्थात् कोल इंडिया लिमिटेड और इसकी सहायक कंपनियों और नेवेली लिग्नाइट कॉर्पोरेशन लिमिटेड के माध्यम से किया जाता है। खनिज कानून (संशोधन) विधेयक, 2020, 02 मार्च, 2020 को लोकसभा में पेश किया गया था, जिसने अधिनियम की योजना में कुछ बदलाव पेश किए, जिनमें सबसे उल्लेखनीय धारा 4 बी का सम्मिलन था, जो यह प्रावधान करता है कि केंद्र सरकार दक्षता के लिए शर्तें निर्धारित कर सकती है। देश में खनिजों के निरंतर उत्पादन के हित में तथा धारा 8 बी यह प्रावधान करने के लिए जोड़ी गई थी कि एक नया पट्टेदार उस भूमि पर खनन कार्य जारी रख सकता है, जिसमें नए पट्टेदार द्वारा खनन कार्य इसके शुरू होने की तारीख से दो साल की अवधि के लिए किया जा रहा है। इस प्रकार यह केंद्रीय कोयला मंत्रालय और खनिज संसाधन मंत्रालय की समग्र जिम्मेदारी होती है जो कोयला और लिग्नाइट भंडार की खोज और विकास के संबंध में नीतियों और रणनीतियों को निर्धारित करता है साथ ही उच्च मूल्य की महत्वपूर्ण परियोजनाओं को मंजूरी देने के साथ साथ सभी संबंधित मुद्दों पर निर्णय लेने का अधिकार भी रखता है।
भारत में कोयले के खनन में सरकारी क्षेत्र की 422 खदानें तथा निजी क्षेत्र की 20 खदानें सहित कुल 442 खदानें हैं। राज्य और क्षेत्रफल के हिसाब से कुछ मुख्य कोयला खनन के राज्य जिनमें झारखंड राज्य में कुल 113 कोयला खान, पश्चिम बंगाल में 73, छत्तीसगढ़ में 53, मध्य प्रदेश में 61 और महाराष्ट्र में कुल 54 कोयला खदान हैं। भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए, सरकार ने खनन क्षेत्र में नई नीतियों को प्रोत्साहित किया है। वर्तमान में भारत सरकार की खनिज संसाधन और कोयला मंत्रालय की ऑफिसियल वेब साइट में उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार झारखंड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश, गोवा इत्यादि राज्यों में मौजूद विभिन्न सार्वजनिक उपक्रमों में लगभग 16 अनुबंध ऐसे जारी किए हैं, जिनमें एमडीओ मॉडल के अनुबंध के जरिए ही निजी कंपनियों द्वारा खनन कार्य का निष्पादन किया जा रहा है। इनकी इनमें झारखंड, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ राज्य की कुल 102.99 मिलियन टन प्रतिवर्ष (MTPA) उत्पादन क्षमता की 13 कोयला खदानें, गुजरात राज्य की 33 MTPA क्षमता की तीन लिग्नाइट तथा झारखंड राज्य की 10 MTPA क्षमता की एक आयरन ओर ब्लॉक शामिल हैं। जबकि 80 से अधिक संसाधनों के लिए इसी मॉडल के लिए अनुबंध की प्रक्रिया जारी है। जिनमें 714.4 MTPA की 71 कोयला, 33.5 MTPA क्षमता की चार आयरन ओर तथा 33 MTPA क्षमता की एक लिग्नाइट और लाइमस्टोन ब्लॉक शामिल है। भारत में कोयला खनन क्षेत्र में बढ़ती कोयले की आवश्यकताओं को पूर्ण करने का यह एक आजमाया, परखा तथा त्वरित मॉडल के रूप में देखा जा रहा है। जो की भविष्य में, कोयला खनन क्षेत्र में विकास की संभावनाओं को प्रदर्शित करता है।
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