Home >> State >> Uttar Pradesh

10 May 2023   Admin Desk



आयुर्वेद इलाज की पद्धति है बहुत ही प्राचीन और अनोखी

लखनऊ/संवाददाता - संतोष उपाध्याय। लखनऊ Lucknow: अग्निकर्म: अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान में होती एक चमत्कारी चिकित्सा, अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान नई दिल्ली में विभिन्न प्रकार के रोगों का इलाज आयुर्वेद के माध्यम से किया जाता है। निश्चित रूप से आयुर्वेद के इलाज की पद्धति बहुत ही प्राचीन और अनोखी हैं । आयुर्वेद की पंचकर्म पद्धति से तो लगभग आप परिचित होंगे, आइए दिन बुधवार को अग्निकर्म (थर्मल माइक्रोक्यूटरी) के बारे में बात करते हैं। लोह, ताम्र, रजत, वंग, कांस्य या मिश्रित धातु से बनी अग्नि शलाका से रोगी के शरीर के दर्द वाले बिंदु पर इस शलाका को गर्म करके स्पर्श या दग्ध (दाह) करते है। सदियों पुरानी यह तकनीक ही “अग्निकर्म' है। यह शरीर की विभिन्न मांसपेशियों और उनके विकारों को दूर करने के लिए उपयोगी है। इससे उपचार करने पर मरीज को बहुत ही कम कष्ट/ स्थानिक क्षणिक पीड़ा महसूस होती है। अग्निकर्म में शलाका यंत्र से शरीर केजिस भाग में पीड़ा/ दर्द है उस भाग को गरम शलाका से जलाया /दग्ध किया जाता है| इससे तुरंत दर्द कम हो जाता है। यह कर्म अत्यंत स्थानिका पीड़ा के लिए सिद्ध कारगर चिकित्सा है । ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद विभाग के प्रोफेसर डॉ आनंदरमन ने बताया कि घुटने, कमर दर्द, एड़ी, मोच, सिर दर्द, कटिस्नायुशूल और गठिया जैसे रोगों के उपचार के लिए अग्निकर्म कारगर है। इससे उपचार करने में सामान्यतया एक बार में दो से पांच मिनट ही लगते हैं और मरीज को तात्कालिक लाभ भी महसूस होता है। सियाटिका जैसे असहनीय और चिरकालिक दर्द से पीड़ित बहुत वर्षों से परेशान लोगों को पांच मिनट में इस कर्म के द्वारा राहत प्राप्त होती है। डॉक्टर अनंतरमन के निर्देशन में डॉक्टर लतिका और उनकी टीम इस चिकित्सा को संपन्न करते हैं। अग्निकर्म में बिना किसी प्रतिकूल प्रभाव के स्थानीय दर्द से तुरंत राहत मिलती है। इस प्रक्रिया में सबसे पहले रोगी को सीधा लिटाया जाता है और दर्द के अनुसार यदि मान लीजिए दर्द एड़ी में हो रहा है तो उसे सीधा लिटा कर एड़ी में दग्ध व्रण के ओवरलैपिंग से बचने के लिए दो अग्निकर्म बिंदुओं के बीच न्यूनतम स्थान निर्धारित किया जाता है अर्थात कुछ पॉइंट निश्चित कर लिए जाते हैं इनके बीच एक न्यूनतम दूरी होती है और इसे गर्म शलाका से ऊतक स्तर पर जलाया जाता है। दहन के उपकरण स्थान विशेष एवं अन्य की तीव्रता के आधार पर अलग-अलग प्रयोग किए जाते हैं। अग्निकर्म के बाद ताजा घृतकुमारी (एलुवेरा) का गूदा दग्ध पर लगाने से जलन के दर्द में राहत मिलती है। इसी प्रकार घुटने कमर और गर्दन के पीछे के दर्द का इलाज किया जाता है। घृतकुमारी (एलुवेरा) के गुदे से उन बिंदुओं पर लेप करने के कुछ समय बाद घी और शहद लगाकर छोड़ दिया जाता है लगभग चार घंटे तक उस स्थानिक/ दग्ध भाग को पानी के प्रयोग से प्रतिबंधित किया जाता है। चिकित्सा टेबल से उतरने पर आपको दर्द /पीड़ा महसूस नहीं होगी कुछ क्षणों के लिए जलने के दर्द का एहसास रहता है जो कुछ समय पश्चात ख़तम हो जाता है। इस बात पर यकीन करना मुश्किल है कि आयुर्वेद के पास बहुत ही विलक्षण तकनीक आज भी है, हमें एलोपैथिक दवाओं के पीछे भागने से बचना चाहिए तथा बिना किसी साइड इफेक्ट के आयुर्वेद के इन विलक्षण तकनीकों का इस्तेमाल गृध्रसी (सियाटिका) जैसेअसहनीय दर्द को खत्म करने के लिए करना चाहिए। अग्निकर्म उपचार के उपरांत ठीक हुए रोग की पुनरावृत्ति नहीं होती क्योंकि इस प्रक्रिया में शलाका द्वारा अग्निकर्म उत्तक स्तर पर होता है अतः रक्तस्राव भी नहीं होता जिस कारण पकने और पस इत्यादि की समस्या भी भविष्य में उत्पन्न नहीं होती । अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान नई दिल्ली की डायरेक्टर प्रोफेसर तनुजा मनोज नेसरी ने बताया कि औषधि द्वारा असाध्य रोग भी अग्निकर्म द्वारा नियंत्रित किए जा सकते हैंऔर आयुर्वेद संस्थान की पूरी कुशल टीम इस प्रकार की चिकित्सा में वरद हस्त है अतः देश के सभी इस प्रकार के रोगियों से अनुरोध है कि इस सरल चिकित्सा से अपना इलाज कराएं ताकि उन्हें दर्द से शीघ्र राहत मिल सके। निश्चित रूप से अग्निकर्म जैसी आयुर्वेद पद्धति का यह मेरा अनुभव है और आशा ही नहीं यह विश्वास है कि आज भी अत्याधुनिक, वैश्वीकरण और भौतिकवादी युग में अक्सर महिलाएं एड़ी ,कमर और घुटनों के दर्द से परेशान रहती हैं और अग्निकर्म चिकित्सा उनके इस दर्द से राहत का एक आसान उपाय है।



Photo Gallery

Related Post

Advertisement

Trending News

Important Links

© Bharatiya Digital News. All Rights Reserved. Developed by TechnoDeva