रायपुर,CG (INDIA) : पं माधवराव सप्रे जयंती पर महाराष्ट्र मंडल में छत्तीसगढ़ मित्र और छत्तीसगढ़ साहित्य एवं संस्कृति संस्थान द्वारा आयोजित समारोह में साहित्य अकादमी के अध्यक्ष शशांक शर्मा ने कहा कि सप्रे जी स्वदेशी विचार के आधार थे। हिंदी की आत्मा थे।
छत्तीसगढ़ साहित्य अकादमी के अध्यक्ष और मुख्य अतिथि शशांक शर्मा ने कहा कि आजादी के बाद स्वदेशी का पत्रकारिता से गुम होना चिंता का विषय है। हिंदी पूरे देश को आजादी के आंदोलन और उसके बाद एकसूत्र में बांधे रखती है। हिंदी भाषा ने स्वदेशी पन को बचाकर रखा है।समारोह के मुख्य वक्ता वीणा पत्रिका इंदौर के संपादक राकेश शर्मा ने कहा कि पं माधवराव सप्रे और उनके समकालीन साहित्यकारों ने स्वदेशी और भारतीय संस्कृति को जिंदा रखा है। हिंदू संस्कृति ही विश्व में बची है बाकी प्राचीन संस्कृति गायब हो चुकी है। राजनीति ने हिंदी के लिए बाधाएं पैदा की हैं। आज भारतीय संस्कृति विश्व में नैतिकता की पताका बनी हुई है।
समारोह के अध्यक्ष डॉ चित्तरंजन कर ने कहा कि पं माधवराव सप्रे का स्मरण भारतीय लेखन की ओर ले जाता है। स्वदेशी विचार की नींव उन्होंने रखी। उनके कार्य उन्हें सदियों तक जिंदा रखेगी। उन्होंने साधन के बजाय साधना को महत्व दिया। वे नवजागरण के प्रमुख लेखक थे। उन्होंने अनुवाद की समृद्ध परंपरा को छत्तीसगढ़ में जन्म दिया। वे भाषा की ताकत पर सार्थक लेखन कर रहे थे।
विशिष्ट अतिथि गिरीश पंकज ने छत्तीसगढ़ की समृद्ध साहित्यिक पत्रकारिता की बात रखते हुए कहा कि सप्रे जी स्वदेश की चिंता करते थे। वे बहुभाषिक थे। उनकी मातृभाषा मराठी थी परन्तु वे जीवन भर हिंदी को मराठी के साथ साथ समृद्ध करते रहे।विशिष्ट अतिथि छत्रपति शिवाजी महाराज विश्वविद्यालय मुंबई के कुलपति डॉ केशरीलाल वर्मा ने कहा कि आजादी के समय हिंदी की अनेक संस्थाओं ने हिंदी के माध्यम से भारतीयों को एक किया। सप्रे जी एक कुशल संगठक थे।
इस अवसर पर डॉ सीमा अवस्थी और सीमा निगम के संपादन में साझा संकलन सिंदूर गौरव, दीप्ति श्रीवास्तव, डॉ सुरेन्द्र कुमार तिवारी, डॉ ऋचा यादव, जसवंत क्लाडियस, डॉ तृप्ता कश्यप की पुस्तकों का विमोचन किया गया। साथ ही हिंदी और मराठी में एक साथ लिखने वाले डॉ आर डी हिलोडे, प्रो अनिल कालेले, शशि वरवंडकर, अनिता करडेकर, त्र्यंबक राव साटकर, लतिका भावे और भाऊराव ढोमने का सम्मान किया गया। संचालन डॉ सुधीर शर्मा ने और आभार प्रकट डॉ माणिक विश्वकर्मा ने किया।
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