लखनऊ/ संवाददाता- संतोष उपाध्याय लखनऊ: छठ पूजा का त्यौहार बिहार ,उत्तर प्रदेश, पूरे भारत देश मे ही नहीं बल्कि देश विदेश में भी यह त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। श्रद्धालुओं की मान्यता है कि यह पूजा अपने परिवार के सदस्यों की लंबी उम्र व मनोकामना पूर्ण करने हेतु मनाया जाता है। यह पर्व चार दिनों का है। प्रत्येक वर्ष दिवाली त्योहार के बाद भैयादूज के तीसरे दिन से यह आरम्भ होता है। इस दौरान 36 घंटे का कठिन निर्जला उपवास रखा जाता है। कार्तिक माह की चतुर्थी तिथि को पहले दिन नहाय खाय, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन डूबते सूर्य और चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इनमें पवित्र स्नान, उपवास और पीने के पानी (वृत्ता) से दूर रहना, लंबे समय तक पानी में खड़ा होना, और प्रसाद (प्रार्थना प्रसाद) और अर्घ्य देना शामिल है। पहले दिन सेन्धा नमक, घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दू की सब्जी प्रसाद के रूप में ली जाती है। अगले दिन से उपवास आरम्भ होता है। व्रति दिनभर अन्न-जल त्याग कर शाम करीब सात बजे से खीर बनाकर, पूजा करने के उपरान्त प्रसाद ग्रहण करते हैं, जिसे खरना कहते हैं। तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य यानी दूध अर्पण करते हैं। अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य चढ़ाते हैं और अपने छठ पूजा व्रत का पालन करते हैं। पूजा में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है। लहसून, प्याज वर्जित होता है। जिन घरों में यह पूजा होती है, वहाँ भक्तिगीत गाये जाते हैं। अंत में लोगो को पूजा का प्रसाद दिया जाता हैं। कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाने वाला एक हिन्दू पर्व है। सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। कहा जाता है यह पर्व मैथिल, मगध और भोजपुरी लोगो का सबसे बड़ा पर्व है ये उनकी संस्कृति है। छठ पर्व बिहार मे बड़े धुम धाम से मनाया जाता है। ये एक मात्र ही बिहार या पूरे भारत का ऐसा पर्व है जो वैदिक काल से चला आ रहा है और ये बिहार कि संस्कृति बन चुका हैं। यहा पर्व बिहार कि वैदिक आर्य संस्कृति कि एक छोटी सी झलक दिखाता हैं। ये पर्व मुख्यः रुप से ॠषियो द्वारा लिखी गई ऋग्वेद मे सूर्य पूजन, उषा पूजन और आर्य परंपरा के अनुसार बिहार मे यहा पर्व मनाया जाता हैं। पार्वती का छठा रूप भगवान सूर्य की बहन छठी मैया को त्योहार की देवी के रूप में यह पूजा जाता है। यह चंद्र के छठे दिन काली पूजा के छह दिन बाद छठ मनाया जाता है। मिथिला में छठ के दौरान मैथिल महिलाएं, मिथिला की शुद्ध पारंपरिक संस्कृति को दर्शाने के लिए बिना सिलाई के शुद्ध सूती धोती पहनती हैं। त्यौहार के अनुष्ठान कठोर हैं और चार दिनों की अवधि में मनाए जाते हैं। पूजा के लिए बनाए गए बेदी की सुरक्षा के लिए लोग लक्ष्मी और गणेश की मूर्ति को लगा रहे हैं ताकि छठ पूजा तक गणेश और लक्ष्मी उनकी जगह की सुरक्षा करेंगे ताकि कोई उस पर अपना कब्जा ना जमा सके। आस्था का महापर्व छठ पूजा की तैयारियां दीपावली के बाद से ही शुरू हो जाती है। इस त्योहार पर छठी माता और सूर्य देव की पूजा-उपासना की जाती है। परवातिन नामक मुख्य उपासक (संस्कृत पार्व से, जिसका मतलब 'अवसर' या 'त्यौहार') आमतौर पर महिलाएं होती हैं। हालांकि, बड़ी संख्या में पुरुष इस उत्सव का भी पालन करते हैं क्योंकि छठ लिंग-विशिष्ट त्यौहार नहीं है। छठ महापर्व के व्रत को स्त्री , पुरुष, बुढ़े, जवान सभी लोग करते हैं। कुछ भक्त नदी के किनारों के लिए सिर के रूप में एक परिक्रमा भी करते हैं। पर्यावरणविदों का दावा है कि छठ सबसे पर्यावरण-अनुकूल हिंदू त्यौहार है। यह त्यौहार नेपाली और भारतीय लोगों द्वारा अपने डायस्पोरा के साथ मनाया जाता है।
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