बिलासपुर Bilaspur, CG: बिलासपुर सहित राज्य में महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज का खतरा बढ़ रहा है।छत्तीसगढ़ आयुर्विज्ञान संस्थान (सिम्स) बिलासपुर के बायोकेमिस्ट्री विभाग और स्त्री रोग विभाग के संयुक्त शोध में यह तथ्य प्रकाश में आया है।
चिकित्सकों की भाषा में इसे जेस्टेशनल डायबिटीज मेलिटस के नाम से जाना जाता है। गर्भावस्था के आरम्भ अथवा मध्य में ग्लूकोस का मेटाबोलिज्म सम्पूर्ण रूप से नहीं हो पाता है। इस स्थिति को जेस्टेशनल ग्लूकोज़ इम्पेयरमेंट कहते हैं। यही स्थिति आगे चलकर गर्भावस्था में होने वाले डायबिटीज मेलिटस में परिवर्तित हो जाती है। मातृत्व स्वास्थ्य विभाग, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार की रिपोर्ट के अनुसार भारत में गर्भावस्था के दौरान जेस्टेशनल मधुमेह से ग्रसित स्त्रियों का प्रतिशत 10 से 14.3 प्रतिशत है, जो की वैश्विक प्रतिशत से बहुत अधिक है। सिम्स में बायोकेमिस्ट्री विभाग में हुए शोध में भी चौकाने वाले आंकड़े आये हैं।
डॉ प्रशांत निगम ने विभाग द्वारा किये गए पॉयलेट स्टडी में ही 600 महिलाओं में से 90 महिलाओं में जेस्टेशनल डायबिटीज की स्क्रीनिंग हेतु ओरल ग्लूकोस टॉलरेंस टेस्ट के परिणाम के आधार पर निर्धारित मानक से ज्यादा ग्लूकोज़ पाया गया। सिम्स आने वाली गर्भवती महिलाओं में उक्त पायलट स्टडी के अनुसार 15% महिलायें जेस्टेशनल डायबिटीज से पीड़ित पाई गईं हैं, व्यापक शोध करने पर यह आंकड़ा कम या ज्यादा हो सकता है।
स्त्री रोग विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ संगीता जोगी ने बताया की यदि जेस्टेशनल डायबिटीज का इलाज़ न किया जाए तो माँ एवं बच्चे दोनों को खतरा हो सकता है। इसीलिए सभी गर्भवती स्त्रियों को अनिवार्यतः यह जांच करानी चाहिए। यह जांच बहुत सरल एवं सुगम है। सिम्स में यह जांच नियमित रूप से की जा रही है। जेस्टेशनल डायबिटीज का उपचार न कराने पर जहाँ माँ के गर्भाशय में असामान्य रूप से अधिक अम्नियोटिक द्रव बन सकता है।वहीँ प्री-इक्लैम्प्सिया, प्रदीर्घ अथवा बाधित प्रसव (प्रोलोंग अथवा ऑब्स्ट्रक्टेड प्रसव) या पोस्टपार्टम हेमोरेज जैसी विभिन्न घातक स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। यही नहीं गर्भस्थ शिशु का गर्भपात, गर्भावस्था में मृत्यु, जन्मजात विकृति, श्वसन सम्बन्धी कारकों से पीड़ित हो सकता है। नवजात शिशु को जन्म के उपरान्त भी खतरा रहता है।
जेस्टेशनल डायबिटीज के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें मुख्य कारण अनुवांशिक कारक, अधिक उम्र में गर्भाधान करना, मोटापा, पोषक आहार का सेवन न करना, निष्क्रिय जीवन शैली, पॉलीसिस्टिक ओवेरी सिंड्रोम, गर्भावस्था में उचित देखभाल न करना एवं तनाव सम्मिलित है। साथ ही सही समय पर जांच न कराना भी एक प्रमुख कारण है। जाँच उपरान्त उपचार हेतु किसी भी एंटीनेटल केयर सेण्टर अथवा चिकित्सा महाविद्यालय में अवश्य जाएँ। स्त्रीरोग विभाग, सिम्स में भी उपचार हेतु समस्त सुविधाएँ उपलब्ध हैं। अधिष्ठाता सिम्स डॉ के के सहारे ने बायोकेमिस्ट्री एवं स्त्रीरोग विभाग के चिकित्सकों को इस पायलेट स्टडी के लिए शुभकामनायें दी एवं विस्तृत शोध करने हेतु प्रेरित किया।
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