सूरत: संयम जीवन के 52 वे वर्ष में प्रवेश के सूरत के प्रथम चतुर्मास के नियमित प्रवचन में आचार्य जिन मणि प्रभ सुरिश्वर ने कहा कि बिना उत्तर के किसी सवाल का कोई महत्व नहीं होता है। जिस तरह से पानी न तो मूल्यवान है न ही अमोल है। दूसरी तरह पानी अमूल्य भी है और अमोल भी है, यह प्यास के ऊपर निर्भर करता है।
प्यास जितनी गहरी और ज्यादा होगी तो पानी भी उतना ही मूल्यवान हो जायेगा उसके लिए उसी तरह संसार में भी अरिहंत परमात्मा के प्रति भी जितनी जिज्ञासा होगी उतने ही आप परमात्मा के नजदीक पहुंच सकते है। जिज्ञासा से ही धर्म आरंभ होता है। भगवान महावीर की देशना के अनुसार हमारे भीतर धर्म ,आराधना,के बारे में जिज्ञासा होना जरूरी है तभी तो हम धर्म आराधना से जुड़ पाएंगे।
शनिवार को विशेष प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम के अंतर्गत श्रद्धालुओं के प्रश्नों के उत्तर देकर उनका समाधान किया गया। सवाल होठों से पैदा होते है, हृदय से पैदा होते है, चेतना से पैदा होते है मुख्य रूप से आपके सवाल चेतना के साथ पैदा होते है वही महत्वपूर्ण होते है। प्रवचन आरंभ होने के बाद हम देरी से आते है तो क्या हम सामायिक ले सकते है क्या?
गुरुदेव उत्तर देते हुए बताया की अगर आपकी धर्म के प्रति, प्रवचन के प्रति, गुरु के प्रति और जिनशासन के प्रति सच्ची श्रद्धा है तो आप देरी से आते ही नही। जिस तरह से आपको बाहर कही जाना होता है तो आप रेलवे स्टेशन समय पर पहुंच जाते हो उसी तरह से प्रवचन में समय पर आना ही आपका दायित्व है। प्रवचन के तीन भाग होते है मंगलाचरण, प्रवचन, एवम सर्व मंगल, प्रवचन तभी ही पूरा होता है जब तक सर्व मंगल नही होता है।
आगे गुरुदेव ने बताया की जैन धर्म के अनुसार नियम तो यह है की प्रवचन आरंभ होने से पूर्व ही आप आसान पर बैठकर आपकी सामायिक आरंभ हो जानी चाहिए। प्रवचन एवम सामायिक में हृदय ओ खोलना होता है चित पूर्व स्थिति में सुनी गई हर बात सार्थक होगी कान तो केवल सूनने का माध्यम है अगर आप कान से सुन रहे है और मन आपका कही और है तो प्रवचन सुनना सार्थक नही होगा ।
संघ अध्यक्ष ओमप्रकाश मंडोवरा ने बताया की 19 अगस्त को महामृत्युंजयतप के तपस्वियों का शाही पारणा संघ की तरफ से होगा अन्य भी कई तरह की तपस्या संघ में गतिमान है।
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