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23 December 2022   Admin Desk



जलवायु परिवर्तन एवं विकास की चुनौतियां के विषय पर जागरूक हुए के.के.सी. के छात्र व छात्रायें

लखनऊ/ संवाददाता - संतोष उपाध्याय लखनऊ: राजधानी लखनऊ में जय नारायण मिश्र महाविद्यालय, मे दिन शुक्रवार को 'जलवायु परिवर्तन एवं विकास की चुनौतियां' विषय पर एक व्याख्यान का आयोजन किया गया। व्याख्यान में मुख्य अतिथि वक्ता के रूप में बोलते हुए भारत के जल पुरुष एवं रमन मैग्सेसे अवार्ड से सम्मानित डॉ राजेंद्र सिंह,अध्यक्ष, विश्व बाढ़ सुखाड़ लोक आयोग, स्वीडन ने छात्राओं से कहा कि जल ही जलवायु है, और जलवायु ही जल है। इसके समक्ष जो वैश्विक चुनौतियां हैं उनके मूल मे जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि जब तक हम भगवान को मानते थे तब तक हम दुनिया को रास्ता दिखाते थे, तब तक हम विश्व गुरु माने जाते थे। उन्होंने भगवान शब्द का तात्पर्य बताते हुए कहा कि भ से भूमि, व से वायु, आ से आग और न से नीर अर्थात जल को भगवान कहा जाता है। उन्होंने कहा कि भारत में अनेकों भाषाएं बोली जाती हैं जो एक दूसरे से अलग होती है किंतु भगवान शब्द सभी में पाया जाता है। उन्होंने कहा कि पंचमहाभूतो को ही हम भगवान कहते थे। भगवान हमें जोड़ता था, तोड़ता नहीं था। उन्होंने छात्र छात्राओं को शिक्षा और विद्या के बीच अंतर बताते हुए कहा कि शिक्षा हमें स्वार्थ से जोड़ती है और मैं का भाव लाती है। जबकि विद्या, सद्भावना लाती है और सबके सुख की चिंता करती है। इसमें मुझे की जगह 'हम का भाव प्रमुख होता है। हमारी विरासत हमें मानवता और प्रकृति के बीच संतुलन बनाना सिखाती है। प्यार और सम्मान की भावना को बढ़ाती है।आज हमारे लिए बड़ी नौकरी वो है, जिसमें पसीना ना बहाना पड़े। उन्होंने कहा कि जब प्रकृति से लेनदेन का संतुलन बना रहता है, तभी सनातन विकास होता है। जिसमें सदैव नूतन निर्माण होता है, जो सदैव जीवित रहता है। वही सनातन विकास है। उन्होंने आज के विकास की व्याख्या करते हुए बताया कि आजादी के समय देश में केवल 232 गांव में पीने का पानी नहीं था किंतु आज 75 वर्ष के बाद 87000 गांव में पीने का पानी नहीं है। इस वक्त देश में कर्नाटक, राजस्थान और महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्र, 3% सूखाग्रस्त थे परंतु आज 17 राज्यों के 365 जिले सूखे से प्रभावित हैं जो कि 62 परसेंट है। आजादी के समय सिर्फ 1% भूमि पर बिहार, बंगाल एवं उड़ीसा में बाढ़ आती थी। जबकि आज 30% भूमि पर बाढ़ आती है। आज देश में 190 जिले बाढ़ से प्रभावित हैं। उन्होंने कहा कि पानी के स्थान की निकासी पर सड़कें और गलत स्थानों पर पुल बनाने से ड्रेनेज सिस्टम पूरी तरह से प्रभावित हुआ है। आज हमारे सामने जलवायु एवं विकास की चुनौतियों में विस्थापन, बिगाड़ एवम विनाश की चुनौतियां प्रमुख है। उन्होंने युवाओं का आवाहन करते हुए कहा कि, जो जीवन में एक ही काम करता है उसे समय के साथ सिद्धि प्राप्त हो जाती है। जिसका दिमाग कई चीजों पर रहता है, वह भटकता है एवं लक्ष्य को प्राप्त करने में असमर्थ होता है। उन्होंने छात्र-छात्राओं से कहा कि, संयुक्त राष्ट्र में पहले जलवायु में केवल वायु का की वर्णन होता था। किंतु अब तक हाल के दो विश्व सम्मेलनों में किए गए उनके आंदोलन और जन सहयोग के फल स्वरुप जल को भी जलवायु में समावेशित किया गया है। उन्होंने कहा कि, जल ही जलवायु है और जलवायु ही जल है। उन्होंने उत्तर प्रदेश के महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों के भूगोल विभाग, समाजशास्त्र एवं राष्ट्रीय सेवा योजना के शिक्षकों के सहयोग से, 'बाढ़ सुखाड़ लोक आयोग' के कार्यों को आगे बढ़ाने की दिशा में कार्य योजना बनाई गई है। शिक्षकों के माध्यम से ऐसे क्षेत्रों में जो बाढ़ एवं सूखे से प्रभावित है, उनकी स्थानीय जानकारी एकत्रित करने हेतु श्री श्री जयनारायण मिश्र महाविद्यालय के भूगर्भ शास्त्र के विभागाध्यक्ष, डॉ अंशुमाली शर्मा को समन्वयक के रूप में नियुक्त किया गया है। इस कार्य में उनकी सहायता करने के लिए परमार्थ समाज सेवी संस्था के डॉक्टर संजय सिंह को प्रभार दिया गया है। कार्यक्रम के अंत में उन्होंने छात्र-छात्राओं के स्वाभाविक प्रश्नों का उत्तर दिया। इस अवसर पर 'सूखा बाढ़ और जलवायु परिवर्तन वैश्विक चुनौती स्थानीय समाधान' विषय पर आधारित एक पुस्तक का विमोचन भी किया गया। इस अवसर पर भूगर्भ शास्त्र विभाग के शिक्षक डॉ शैलेंद्र कुमार चौधरी, डॉ नवल किशोर तिवारी, डॉ प्रीतिका सिंह, डॉ सरनजीत सिंह, कार्यकारी प्राचार्य प्रो एस सी हजेला, एवं महाविद्यालय के शिक्षक प्रो के के शुक्ला, प्रो एसपी शुक्ला, प्रो शुची मिश्रा, डॉ नीलम अग्रवाल, डॉ गिरिजेश त्रिपाठी, डॉ मनीष मिश्रा, डॉ विजय राज श्रीवास्तव सहित अनेक छात्र छात्राएं उपस्थित रहे।



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