27 December 2022   Admin Desk



हाईकोर्ट का फैसला: बिना ओबीसी आरक्षण के समय पर होंगे उत्तर प्रदेश में नगर न‍िकाय चुनाव

लखनऊ/ संवाददाता - संतोष उपाध्याय लखनऊ: उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण पर हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अपना फैसला सुना दिया है। हाईकोर्ट ने ओबीसी आरक्षण के बिना ही निकाय चुनाव कराने का आदेश दे दिया है। हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद ओबीसी के लिए आरक्षित सीट जनरल मानी जाएगी। इस फैसले को सरकार के लिए बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है। इस मामले में 24 दिसंबर को बहस पूरी हो गई थी। कोर्ट ने निकाय चुनावों से संबंधित सभी 93 याचिकाओं पर सुनवाई के बाद 27 दिसंबर तक फैसला सुरक्षित कर लिया था। हाईकोर्ट ने पांच दिसंबर को जारी ड्राफ्ट नोटिफिकेशन को भी खारिज कर दिया है। बेंच ने कहा कि अगर आरक्षण तय करना है, तो ट्रिपल टेस्ट के बिना कोई आरक्षण तय नहीं होगा। सरकार को चुनाव जल्दी कराने चाहिए। ये आदेश जज देवेंद्र कुमार उपाध्याय और सौरभ लवानिया की खंडपीठ ने दिया। जनहित याचिका रायबरेली के सामाजिक कार्यकर्ता वैभव पांडेय ने लगाई थी। यूपी निकाय चुनाव पर हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सरकार का ड्राफ्ट नोटिफिकेशन भी खारिज किया। सरकार कमीशन गठित कर सकती है। कोर्ट के इस फैसले के बाद अगर सरकार को ओबीसी आरक्षण लागू करना है, तो कमीशन गठित करना होगा। ये कमीशन पिछड़ा वर्ग की स्थिति पर अपनी रिपोर्ट देगा। इसके आधार पर आरक्षण लागू होगा। आरक्षण देने के लिए ट्रिपल टेस्ट यानी तीन स्तर पर मानक रखे जाते हैं। इसे ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूला कहा गया है। अब इस टेस्ट में देखना होगा कि राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग की आर्थिक-शैक्षणिक स्थिति कैसी है? उनको आरक्षण देने की जरूरत है या नहीं। कोर्ट में कहा गया कि ये राजनीतिक आरक्षण यू पी सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता विनोद कुमार शाही और मुख्य स्थाई अधिवक्ता अभिनव नारायन त्रिवेदी ने सरकार का पक्ष रखा था। यह दलील दी गई कि निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण एक प्रकार का राजनीतिक आरक्षण है। पहले मामले की सुनवाई के समय राज्य सरकार का कहना था कि मांगे गए सारे जवाब प्रति शपथपत्र में दाखिल कर दिए गए हैं। इस पर याचियों के वकीलों ने आपत्ति करते हुए सरकार से विस्तृत जवाब की गुजारिश की‚ जिसे कोर्ट ने नहीं माना। राज्य सरकार ने दाखिल किए गए अपने हलफनामे में कहा कि स्थानीय निकाय चुनाव मामले में 2017 में हुए अन्य पिछड़ा वर्ग के सर्वे को आरक्षण का आधार माना जाए। सरकार ने कहा कि इसी सर्वे को ट्रिपल टेस्ट माना जाए। यह भी कहा कि ट्रांसजेंडर्स को चुनाव में आरक्षण नहीं दिया जा सकता है। ट्रिपल टेस्ट के साथ कुल आरक्षण पचास प्रतिशत से ज्यादा ना हो याचिकाकर्ता के वकील शरद पाठक ने बताया, अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हर राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग के अलग-अलग स्थितियां हैं। इसमें राज्य सरकार को तय करना होगा कि वह अपने राज्य में ओबीसी को कितना आरक्षण देना चाहते हैं, लेकिन महाराष्ट्र के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल टेस्ट का एक फॉर्मूला दिया। ट्रिपल टेस्ट में साथ ही कुल आरक्षण पचास प्रतिशत से अधिक ना हो। हाईकोर्ट में निकाय चुनाव में आरक्षण पर 65 आपत्तियां दाखिल की गईं। हाईकोर्ट ने सभी मामलों को सुनवाई पूरी कर ली है। याचिकाकर्ताओं के द्वारा ओबीसी आरक्षण से लेकर जनरल आरक्षण पर आपत्तियां दर्ज कराई गई थी। इसे ट्रिपल टेस्ट का नाम दिया गया है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक निर्देश में कहा कि अगर अन्य पिछड़ा वर्ग को ट्रिपल टेस्ट के तहत आरक्षण नहीं दिया तो अन्य पिछड़ा वर्ग की सीटों को अनारक्षित माना जाएगा।



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